कहा, हंगामों के कारण संसद में बर्बाद हो रहे हैं जनता के टैक्स के करोड़ों रुपये हर मिनट ढाई लाख रुपये का होता है खर्च
कहा, हंगामों के कारण संसद में बर्बाद हो रहे हैं जनता के टैक्स के करोड़ों रुपये हर मिनट ढाई लाख रुपये का होता है खर्च
खबर खास, नई दिल्ली/चंडीगढ़ :
राज्यसभा सदस्य और पर्यावरण प्रेमी संत बलबीर सिंह सीचेवाल ने संसद न चलने को लेकर राज्यसभा के उपसभापति और केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री को पत्र लिखकर आरोप लगाया है कि जनता के टैक्स से करोड़ों रुपये खर्च हो रहे हैं, लेकिन संसद में कोई सार्थक काम नहीं हो रहा।
संत सीचेवाल द्वारा लिखे गए तीन पन्नों के इस पत्र में दावा किया गया है कि संसद के चालू सत्र के दौरान हर मिनट में ढाई लाख रुपये खर्च होते हैं। इसी तरह एक दिन का औसतन खर्च लगभग 10 करोड़ रुपये होता है और पिछले 12 दिनों में करीब 120 करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं, जबकि इन 12 दिनों में संसद की कार्यवाही ढंग से नहीं चल पाई है।
उन्होंने राज्यसभा के उपसभापति और केंद्रीय मंत्री को लिखे अपने पत्र में कहा है कि जनता के मुद्दों को सदन में उठाना विपक्ष का मुख्य कार्य होता है, लेकिन सदन में ऐसे हालात बना दिए जाते हैं कि विपक्ष को हंगामा करने पर मजबूर होना पड़ता है।
संत सीचेवाल ने कहा कि एक सांसद को शून्य काल, प्रश्न काल और विशेष उल्लेख के माध्यम से जनता के मुद्दों को उठाने का अवसर मिलता है, लेकिन जब संसद ही न चले तो एक सांसद के ये सारे अधिकार छिन जाते हैं। संसद में हंगामा करके किसी की जीत नहीं होती, बल्कि हार होती है देश के आम नागरिकों की, जिन्होंने यह सोचकर प्रतिनिधि चुनकर संसद में भेजा होता है कि एक दिन उनकी आवाज भी संसद की आवाज बनेगी।
उन्होंने कहा कि देश को आज़ाद हुए 75 साल से ज्यादा समय हो गया है, लेकिन हम अब तक देश की जनता को पीने का साफ पानी नहीं दे सके, शुद्ध हवा नहीं दे सके और ना ही शुद्ध भोजन उपलब्ध करा सके, जबकि यह सब मानव जीवन के संवैधानिक अधिकार हैं।
बेरोजगारी के कारण देश की युवा पीढ़ी या तो नशे की दलदल में फंसती जा रही है या विदेशों की ओर पलायन कर रही है। रोज़गार की तलाश में विदेश गए भारतीय किस तरह दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं, इस पर कभी संसद ने चिंता जाहिर नहीं की।
इसी तरह अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति ने भारतीयों को हथकड़ी लगाकर कैदियों की तरह डिपोर्ट किया था। रूस की सेना में शामिल हुए 13 परिवारों के बच्चे अब भी लापता हैं और उनके परिजन आज भी उनकी प्रतीक्षा कर रहे हैं—लेकिन ऐसे मुद्दों पर कभी संसद में चर्चा नहीं हो सकी।
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